(1)
निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय।
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।।
अर्थ :
कबीर दास जी कहते हैं, जो आपकी बुराई करे उसे अपने पास ही रखिए, बल्कि उसके रहने के लिए अपने घर के आंगन में ही झोपड़ी बना दीजिए.
वह तो बिना साबुन और पानी के हमारी कमियां बता कर हमारे स्वभाव की सफाई करता है.
शब्दार्थ:
◇निंदक= निंदा(बुराई) करने वाला.
◇नियरे= पास, करीब.
◇कुटी= झोपड़ी.
◇छवाय= छाना, डालना.
◇निर्मल= शुद्ध, साफ.
◇सुभाय= स्वभाव.
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(2)
कबीरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर।
ना काहू स दोस्ती, न काहू से बैर।।
अर्थ :
कबीर दास जी कहते हैं वह एक साधु हैं, वह बाज़ार में खड़े हैं और सबकी सबका भला चाहते हैं.
उनकी तो किसी से दोस्ती है, और न किसी से दुश्मनी अर्थात् वह तो सबका भला चाहते है.
शब्दार्थ:
◇ख़ैर= भलाई.
◇काहू= किसी से.
◇बैर= दुश्मनी.
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(3)
दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार।
तरुवर ज्यों पत्ता झड़े, बहुरि न लागे डार।।
अर्थ :
कबीर दास जी कहते हैं कि मनुष्य का जन्म बहुत दुर्लभ है अर्थात् हम बहुत सौभाग्यशाली हैं जो हम मनुष्य योनि में जन्मे हैं, अब हमें व्यर्थ के कामों में पड़कर इसे बेकार नहीं करना चाहिए.
क्योंकि जिस प्रकार पेड़ से पत्ता गिरने के बाद दुबारा नहीं जुड़ सकता उसी प्रकार एक दिन मृत्यु आ जाने के बाद फिर कुछ नहीं हो सकता .
शब्दार्थ:
◇दुर्लभ= बहुत कठिनाई से मिलने वाला.
◇मानुष= मनुष्य, इंसान.
◇तरुवर= पेड़.
◇बहुरि= दुबारा, फिर.
◇लागे= लगे, लगना.
◇डार= डाल, शाखा.
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(4)
बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि।
हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।।
अर्थ :
कबीर दास जी कहते हैं कि सही बोली बोलना हमारे लिए बहुत महत्त्व रखता है,और ये बात वह लोग बहुत अच्छी तरह जानते है जो सही बोली बोलकर लाभ उठाते हैं.
कुछ भी बोलने से पहले हमें उसे पहले अपने दिल में ही तौल लेना चाहिए अर्थात् सोच समझ लेना चाहिए कि हम जो बोलने जा रहे हैं वह सही है या नहीं तब ही बोलना चाहिए .
शब्दार्थ:
◇जानि= जानना, समझना.
◇हिये= हृदय, दिल.
◇तौलि= तौलना, समझना.
◇मुख= मुंह.
◇आनि= आना.
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(5)
कबीरा तेरी झोपडी, गल कटीयन के पास।
जैसी करनी वैसे भरनी, तू क्यों भया उदास।।
अर्थ :
कबीर दास जी कहते हैं कि उनकी झोपड़ी कसाइयों के पास हैं और वह जीव हत्या से बहुत दुखी है.
लेकिन फिर उनको ज्ञान प्राप्त होता है कि जो जैसा करेगा वैसा भरेगा ईश्वर सबके कर्म और कुकर्म अनुसार ही पुरुस्कार देगा और दंडित करेगा, इसके लिए उन्हें परेशान होने की ज़रूरत नहीं है और न ही उदास होने की.
शब्दार्थ:
◇गल कटीयन= गला काटने वाले, कसाई.
◇भया= होना.
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(6)
बकरी पाती खात है ताकी काढ़ी खाल।
जे नर बकरी खात हैं, ताको कौन हवाल।।
अर्थ :
कबीर दास जी कहते हैं कि बकरी एक निर्दोष जीव है जो किसी को नुक़सान नहीं पहुंचती है तब भी उसकी खाल निकाली जाती है.
अब ये सोचने की बात है कि जो लोग बकरी का भक्षण करते हैं अर्थात् उसका मांस खाते है उनका कितना बुरा हाल होगा यह तो ईश्वर ही बेहतर जनता है.
शब्दार्थ:
◇पाती= पत्ती.
◇खात= खाना.
◇ताकी= उसकी.
◇काढ़ी= खींचना.
◇जे= जो.
◇नर= मनुष्य, इंसान.
◇ताको= उसका.
◇हवाल= हाल.
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(7)
करता था तो क्यूं रहया, जब करि क्यूं पछिताय।
बोये पेड़ बबूल का, अम्ब कहाँ ते खाय॥
अर्थ :
कबीर दास जी कहते हैं कि जब तू गलत काम कर रहा था तो तब तूने क्यों न सोचा कि ये गलत है, तब तू क्यों गलत काम करता रहा, और कर चुकने के बाद अब जब तुझको ग़लत कामों का फल भुगतना पड़ रहा है तो अब तू क्यों पछता रहा है?
जिस तरह बबूल का पेड़ बोने पर उससे तुझे कांटें ही मिल सकते हैं, आम खाने को नहीं मिल सकते उसी तरह बुरे कर्मों का नतीजा भी बुरा ही होता है.
शब्दार्थ:
◇क्यूं= क्यों.
◇रहया= रहा, रहना.
◇करि= कर कर, करने के बाद.
◇पछिताय= पछताना, पश्चाताप करना.
◇अम्ब= आम.
◇ते= से.
◇खाय= खाना, खाने के लिए.
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